नीलगिरि तहर: पश्चिमी घाट की अनमोल धरोहर
नीलगिरि तहर (Nilgiri Tahr) एक दुर्लभ और सुंदर जंगली बकरी है, जो भारत के पश्चिमी घाट की नीलगिरि पहाड़ियों में पाई जाती है। यह प्रजाति वन्यजीव संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है। नीलगिरि तहर का वैज्ञानिक नाम *Nilgiritragus hylocrius* है।
नीलगिरि तहर की प्रमुख विशेषताएँ:
1. **शारीरिक बनावट**: नीलगिरि तहर का शरीर मजबूत और घने बालों से ढका होता है। नर तहर का रंग गहरा भूरा या काला होता है, जबकि मादा हल्के भूरे रंग की होती है। नर के सिर पर लंबे और मुड़े हुए सींग होते हैं, जबकि मादा के सींग छोटे और सीधे होते हैं।
2. **प्राकृतिक आवास**: यह प्रजाति नीलगिरि पहाड़ियों की ऊँची चट्टानों और घास के मैदानों में रहती है। यह 1200 से 2600 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।
3. **आहार**: नीलगिरि तहर शाकाहारी होता है और यह घास, पत्तियों, झाड़ियों और अन्य वनस्पतियों को खाता है।
4. **सामाजिक व्यवहार**: यह जानवर समूहों में रहना पसंद करता है। एक समूह में आमतौर पर 10 से 20 सदस्य होते हैं, जिनमें मादाएँ और उनके बच्चे शामिल होते हैं। नर अक्सर अकेले या छोटे समूहों में रहते हैं।
5. **प्रजनन**: नीलगिरि तहर का प्रजनन काल आमतौर पर मानसून के बाद होता है। मादा लगभग 6 महीने की गर्भावस्था के बाद एक बच्चे को जन्म देती है।
संरक्षण की स्थिति:
नीलगिरि तहर को IUCN रेड लिस्ट में "संकटग्रस्त" (Endangered) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसकी आबादी में कमी का मुख्य कारण आवास का नुकसान, शिकार और मानवीय गतिविधियाँ हैं। भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन इस प्रजाति के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं।
नीलगिरि तहर का पारिस्थितिक महत्व:
नीलगिरि तहर पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी का एक अहम हिस्सा है। यह पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है। इसके संरक्षण से न केवल इस प्रजाति को बचाया जा सकता है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को भी लाभ होगा।
निष्कर्ष:
नीलगिरि तहर के बारे में जागरूकता फैलाना और इसके आवास को सुरक्षित रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। यह प्रजाति हमारी प्राकृतिक विरासत का एक अनमोल हिस्सा है, जिसे संरक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
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